अनुवाद :

विवाह पंचमी | सीता का धनुष उठाना | राजा जनक का सोच | धनुष परिचय

अनुवाद :  

 सीता का धनुष उठाना

मिथिला में एक ऐसा धनुष था जो आज तक किसी के पास इतना साहस और बल नहीं था जो उठा सके।  उस धनुष का नाम पिनाक था । ये  शिव जि का धनुष था। यह धनुष भगवान के स्थान पर रखा हुआ था। जहां पर राजा जनक अपने भगवान को पूजा करते थे वहां पर धनुष रखा गया था। राजा जनक नित दिन इस धनुष की पूजा करते थे। इस संदर्भ में दो प्रकार की कहानी बताई जाती है उन दोनों कहानी को मैं इसमें दिखाना चाहूंगा।

जानकी मंदिर धनुष प्रसंग


पहली कहानी

एक दिन की बात है कि सीता महल में कुछ दोस्तों के साथ लुका-छिपी खेल रही थीं, उस समय शिव धनुष सीता को छूकर गिर पड़े। सीता बहुत डर गई और उसे उठाकर उस धनुष को मेज पर रख दिया। इसे रखते हुए राजा जनक ने देख लिया।

दूसरी कहानी

इस कहानी के अनुसार, सीता को कहा जाता है कि तुम जाकर भगवान का घर साफ कर दो उसी क्रम में वह धनुष के नीचे अर्थात जिस पर धनुष रखा था उस पर बहुत गंदा धूल लगा था , तो सीता ने सोचा कि इससे भी साफ कर देती हूं उसी समय राजा जनक जी वहां से गुजर रहे थे, तो राजा जनक जी ने देखा कि सीता धनुष को उठाकर दूसरे स्थान पर रख रही है।  और वहां पर सफा कर रही है फिर से वह धनुष वहीं पर उठा कर रख दिए।

पहली कहानी से ज्यादा प्रभावशाली दूसरी कहानी है क्योंकि हम लोग बचपन में यह  बुजुर्गों से दूसरी वाली कहानी सुनते हैं। पहली वाली कहानी ज्यादा टीवी सीरियल या चलचित्र सन में देखने को मिलता है।

राजा जनक का सोच

उन्हें लगता है कि यह एक दिव्य लड़की है। यह सब देखकर राजा जनक बहुत ज्यादा भाव विभोर हो जाते हैं और प्रण लेते हैं कि जो यह शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा आएगा उसी से अपनी पुत्री सीता का विवाह करूंगा। माना जाता है कि तब सीता सिर्फ 5 बरस की थी जब उन्होंने पहली बार शिव धनुष को उठाया था।

धनुष परिचय

मान्यता है कि यह धनुष सिर्फ और सिर्फ विष्णु और लक्ष्मी जी उठा सकते थे क्योंकि किसी के पास इतना सामर्थ और बल नहीं था कि वह उसे हिला भी सके। जैसा कि आप लोग जानते हैं परशुराम जी से प्राप्त हुआ था राजा जनों को यह धनुष तो परशुराम जी भी विष्णु का अवतार माने जाते हैं। शिवजी ने इसे असुरों के नाश करने के लिए बनाया था और परसराम जी ने घोर तप करके या धनुष शिवजी से प्राप्त किए थे।



Post a Comment

0 Comments