अनुवाद :

वैदिक काल का मिथिला का इतिहास || तिरहुत का अर्थ

अनुवाद: 





मिथिला का इतिहास

 

वैदिक काल का इतिहास

कच्छ के रंग से एक गुरु अपने शिष्य के साथ एक ऐसा धरती का टुकड़ा खोजने को निकल पड़े जहां पर वह जगह ऐसा हो कि वह स्वर्ग से भी सुंदर जगह हो और धरती इतनी उपजाऊ हो कि अकाल का संभावना ना हो । गुरु गौतम रहुगण और शिष्य माथव विधेघ इस यात्रा में सबसे पहले प्रयागराज पहुंचे । यहा से बनारस गए और बनारस के नजदीक में सदानीरा नदी है वहां तक पहुंचे। यह नदी को नेपाल में गंड की नदी के नाम से जाना जाता है जो कि नेपाल से उत्पन्न होकर भारत तरफ जाता है। वे दोनों नदी पार कर उस स्थान पर आ गए जिसकी उन्हें खोज थी। और वह स्वर्ग जैसा सुंदर जगह का नाम विदेद्य हुवा ।


चुनौतियां

इन दोनों के आने से पहले यह मान्यता थी कि अगर कोई इस नदी को पार कर गया तो वह विलुप्त हो जाएगा और वापस आएगा और  ऐसी कई बातें हो रही थीं और विश्वास था। नदी पार करके ओ विदेद्य राज्य खोज लिये। और बहुत सारी घटनाएं और चुनौती का सामना करना पड़ा या विदेद्य राज स्थापना करने के लिए। बहुत सारे लोगों ने यह अफवाह फैला दिया था कि विलुप्त हो जाएंगे वापस लौट कर नहीं आएंगे और मारे जाएंगे ऐसी बात सुनकर कोई उस राज्य में जाना नहीं चाहता था और यह समझाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था । ऋषि गौतम राहु गन ने तीन महा पंडितों को बुलाया और वहां पर पूजा, हवन, बलि प्रदान किए। वह योजना बना रहेथे कि उन सभी लोगों को कैसे समझाऊं कि यहां जाने से आप सब नहीं खोएंगे और न ही पतित होंगे। और अंत में जाकर उन्होंने यह सोचा कि ऋषि गौतम राहु गन ने तीन महा पंडितों को बुलाया और वहां पर पूजा, हवन, बलि प्रदान किए। इन सबके कारण स्वर्ग से भी अधिक पवित्र और सुन्दर हो गई। धरती की उर्वरा शक्ति इतनी बढ़ गई है कि किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

 

मिथिला क्षेत्र





तिरहुत

मिथिला को तिरहोत्य भूमि और तिर्हुत खंड भी कहा जाता है। होता का अर्थ चारों वेद का ज्ञाता होता है । तीन लोग आए थे इसीलिए यह भूमि तीरहोत्य भूमि हुआ। तिरहोत्य कालांतर में अपभ्रंश होते हुए तिरहुत बन गया। 

इनके वंश में महान व्यक्तित्व

माथव विधेघ के वंश में राज निमि हुए। इनका अकाल मृत्यु हुआ और अकाल मृत्यु होने तक इन्हें कोई संतान नहीं प्राप्त हुआ था । शोध के बाद ऋषि ने राजा के शव से एक नवजात शिशु को जन्म दिया। यह नवजात शिशु बहुत मंथन करके प्राप्त हुआ तो इसीलिए इनका नाम मीथि पारा और यह अपने पिता के शरीर में से उत्पन्न हुए इसीलिए इनको जनक का उपाधि दिया गया और इनका पूरा नाम मिथी जनक हुआ। जनक का अर्थ होता है उत्पन्न करना। राजा मिथि के समय में यह राज्य विकास के अपने चरम सीमा पर था ।  इनके शूरवीरता और पराक्रम को ध्यान में रखते हुए इनके प्रजा और सेवक यह राज्य को नया नाम मिथिला नाम दिया क्योंकि वह सब इस राजा को भूलना  नहीं चाहते थे और वह चाहते थे कि उन्हें हमेशा याद रखा जाए। और राजा मेथी के समय से जितने भी राजा ने मिथिला पर राज किया उन सभी को जनक का उपाधि मिला। और इसी वंश में एक राजा ने भी राज किया जिनका नाम सिरध्वज जनक हुआ। यहि राजा के समय में मिथिला में अकाल पड़ा, वह भी एक श्राप के कारण।  बहुत मंथन के बाद इसका उपाय निकाला गया और राजा जनक को स्वर्ण के हल से धरती को  जोतना पड़ा ओर जानकि जी का अवतार हुआ अर्थात देवी लक्ष्मी का सीता के रूप में अवतार हुआ।

 

निष्कर्ष

यह सब संक्षिप्त में एक मिथिला का वैदिक काल का इतिहास है।  इस इतिहास को इतना शेयर करें इतना फैलाए की हर एक लोगों को समझ में आएगी मिथिला क्या है।  आपको अगर हिंदी नहीं आती तो आप अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं । मैंने आज तक अपनी किसी भी लेख में यह नहीं कहा कि आप शेयर करिए पर इसमें इसलिए कह रहा हूं कि यह मिथिला के लिए गर्व का बात है।

 जो लोग यह समझ रहे हैं कि मैं मिथिला में नहीं हूं मैं भोजपुरी इलाका में हूं या मैं हिमाली और पहाड़ी इलाका में हूं वह सब को समझना चाहिए कि यह सब एक दिन मिथिला का ही भूमि था। कालांतर में यह सब हुआ और मेरा ऐसा मानना है कि पूरे मिथिला में सिर्फ मिथिला कल्चर नहीं था बल्कि स्थान के अनुसार उसका अलग कल्चर था एक मिथिला राज्य हो सकता है ।  आपका इस पर क्या राय है वह भी हमें टिप्पणी कर कर बताइए।

 

 -अनुसंधान

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