अनुवाद :

Jat Jatin Song maithili folk dance || जट जटिन मैथिली लोकनृत्य

विषय सूची

जट जटिन

 चमरा के खेतबा मे छपर छुपर पनिया

चमरा के खेतबा मे छपर छुपर पनिया ।।२।।

ताहिमे नहाये बभने सुन्दर एहो जान ।।२।।

धोतियो नै खिचै छै जनौ ओ नै मजै छै

रचि रचि तिलक चढाबे ए हो राम ।।२।।


केहन सन अकाल, 

जटीन गेल नैहर बा, ॥ २॥ 

छोरि क अपन देश , 

किछु दिन बाद जट गेल ससुररिया, 

लक सारि गहना सन्देश ॥ २॥ 


घ्युरा फरलौ गे ॥ २॥ 

जटनिया झिमनि फरलौ गे ॥ २॥ 

तो नै जेबै ससुररिया 

घ्युरा के बेच्तौ गे ॥ २॥ 


मैया बेचतौ रे जटा बहिनिया बेचतौ रे ॥ २॥ 

ऐ बेर रितरे लगनमा हम त नैहे जेबौ रे ॥ २॥ 

काठमांडू जेबौ गे जटिन कोलकाता जेबौ गे ॥ २॥ 

हम रुपैया जे पठेबौ से के रखतौ गे ॥ २॥ 

मैया रखतौ रे जटा बहिनिया रखतौ रे ॥ २॥ 

ऐ बेर रितरे लगनमा हम त नैहे जेबौ रे ॥ २॥ 


दुरे दुर रे जटा दुरे रहिये रे जटा

सरल चाउर रे जटा राखल छाउर रे जटा

बैगन भाटि रे जटा 

आरे जटबा आआआ

झुल्फि सबैरते चलि अबिहे रे जटा

आरे ए जटबा आआ ओ ओ ओ 
 झुल्फि सबैरते चलि अबिहे रे जटा


दुरे दुर गे जटिन दुरे रहिये रे जटिन

सरल भात गे जटिन सरल तिमन गे जटिन

बैगन भाटि गे जटा 

आरे जटनि हो हो हो 

हौसलि पेन्हैते चलि अबिहे रे जटिन

आगे ए जटनि हो होओ ओ 

हौसलि पेन्हैते चलि अबिहे रे जटिन

हउसलि जखन कहलियौ, रे जटबा रे जटबा 

हउसलि किया नै अनले रे ॥ २॥

मोरे बालि समैया रे जटबा 

हउसलि किया नै अनले रे ॥ २॥

हउसलि जखन अनलियौ, गे जटनि गे जटनि गे जटनि 

हउसलि जखन अनलियौ, गे जटनि 

पेटिमे क धेलेगे  ॥ २॥

अइ बारि समया गे जटानि 

हउसलि किया नै पेन्हले गे ॥ २॥

जाइ छियौ गे जटीनिया देश रे विदेश॥ २॥

तोरा लागि अनबौ गे जटिन टिकबा सनेस ॥ २॥

नै चहि टिका नथिया , नै चाहि सनेस ॥ ३ 

हमरा लागि तोहि रे ,जटबा सब स विशेष ॥ २॥

हमरो लागि तोरा बिनु किछियो नै शेष ॥ २॥

हो तोही रे बिषेश

तोरा बिनु किछियो नै शेष  ॥ २॥




जट जटिन नृत्य


गीतका अर्थ

"जट-जटिन" मिथिला क्षेत्र का एक पारंपरिक और गहन लोकगीत है, जो न केवल वर्षा ऋतु में खेती-किसानी और पर्यावरण से जुड़ी प्रार्थनाओं को दर्शाता है, बल्कि समाज, जाति-व्यवस्था, प्रेम, पीड़ा और संघर्ष की मिश्रित भावनाओं को भी उजागर करता है। यह गीत विशेष रूप से "जट-जटिन" समुदाय द्वारा वर्षा ऋतु में गाया और नृत्य किया जाता है। 'जट' पुरुष पात्र है और 'जटिन' स्त्री पात्र। ये दोनों प्रतीकात्मक रूप से मिथिला के ग्रामीण समाज और मानवीय संवेदनाओं के प्रतिनिधि हैं।


गीत के आरंभ में एक दृश्य है, जहाँ ब्राह्मण चमार जाति के खेतों में जमा गंदे पानी (छप्पर-छप्पर पनिया) में स्नान कर रहे हैं और तिलक लगा रहे हैं। यह उस सामाजिक विडंबना को दर्शाता है जहाँ जाति-वर्ग के नियम व्यावहारिक जीवन की मजबूरियों के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। वहीं जाट और जट्टिन के बीच का संवाद हमें एक ऐसी प्रेम कहानी की ओर ले जाता है जो भावनाओं से भरपूर है।


अकाल के कारण जाट अपने परिवार को छोड़कर मायके चली जाती है। कुछ दिनों बाद, जाट गहने और संदेश लेकर ससुराल जाती है, लेकिन परिस्थितियाँ उन्हें अलग दिशा में ले जाती हैं। जब जाट को बुलाया जाता है, तो वह साफ कह देती है कि इस बार वह 'रीत के लगन' में नहीं आएगी, यानी अब वह परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर समझौता नहीं करेगी।

जतिन कहता है कि वह पैसा कमाने विदेश जाएगा – कोलकाता या काठमांडू – और वहाँ से पैसे भेजेगा। लेकिन जतिन पूछता है – “वह पैसा कौन रखेगा?” जवाब में वह खुद कहती है – “मैया रखेगी, बहिनिया रखेगी”, लेकिन वह खुद नहीं जाएगी। वह स्पष्ट करती है कि उसके लिए सबसे कीमती चीज़ साथी है, पैसा या गहने नहीं।


गाने के अगले हिस्से में दोनों के बीच प्यार भरी बातचीत, थोड़ी तकरार और हंसी-मज़ाक है। जटिन कहता है - "तुम सज-धज कर आओ, फिर बात करेंगे", और जटिन कहता है - "अभी तुम दूर रहो!" फिर जटिनताना मारता है कि जब मैं तुम्हारे लिए "हौसली" (एक पारंपरिक आभूषण) लाया था, तो तुमने उसे डिब्बे में क्यों रखा, पहना क्यों नहीं?


जवाब में जट कहते हैं कि अब जब भी वह विदेश जाएंगे तो टिकुली, नथिया, मांग टीका आदि लेकर आएंगे, लेकिन जतिन उनकी बात काटते हुए कहते हैं - "हमारा किछु नहीं चाहिए - नई टीका, नई सनेस। हमारा बस तू चाहिए - तोही रे विशेष।" यानि उसका प्यार ही उसके लिए सबसे कीमती है, बाकी सभी चीजें महत्वहीन हैं।


अंततः यह गीत मानवीय प्रेम, सामाजिक विडंबनाओं, ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों और एक स्त्री की आत्मनिर्भर सोच को एक साथ समेटे हुए है। यह न केवल मनोरंजन का एक माध्यम है जो मिथिला की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है, बल्कि एक सांस्कृतिक दस्तावेज़ भी है जिसमें प्रेम, संघर्ष, परंपरा और परिवर्तन - सब एक साथ जीवंत हो उठते हैं।

-अशोक दत

-

Post a Comment

0 Comments