समा चाकेवा
परिचय
समा चाकेवा या समा चाकेबा एक हिंदू
त्योहार है, जो भारतीय उपमहाद्वीप (भारत और नेपाल) के मिथिला क्षेत्र से उत्पन्न होता है। यह भाइयों और
बहनों का त्योहार है। यह अंग्रेजी महीना नवंबर में मनाया जाता है। इस त्योहार में लोक रंगमंच और गीत
शामिल हैं और भाइयों और बहनों के बीच प्यार का उत्सव मनायाजाता हैं। पुराणों में वर्णित एक कथा पर
आधारित हे ।
यह कृष्ण की बेटी समा की कहानी बताती है, जिस पर गलत काम करने का झूठा आरोप लगाया गया था। उसके पिता ने
उसे एक पक्षी में बदलकर उसे दंडित किया, लेकिन उसके भाई चाकेवा के प्यार और बलिदान ने अंततः उसे मानव
रूप प्राप्त करने की अनुमति दी। छठ पूजा की खरना के दि इसे मिट्टि का उपयोग कर कर बनाया जाता हे । यह
कार्तिक मास के पंचमी तिथि से खेला जाता है। और पूर्णिमा तक या खेल चलता रहता है। वे पारंपरिक गीत गाते
हैं, कुछ अनुष्ठान करते हैं, जैसे टोकरियाँ बदलना, फकरा पढना ।
सामा चकेवा खेलने का कारण
सामा चकेवा कृष्ण भगवान के पुत्री और पुत्र थे। पुत्री सामा स्वभाव से चंचल और सब में घुल मिल जाने वाली स्त्री थी। कुछ समाज के लोग सामा को गलत नजर से देखते थे। एक व्यक्ति जिसका नाम चुग्ला था वह गलत तरीके से सामा के पिता कृष्ण को सामा के प्रति गलत धारणा लेकर भड़काया और सामाको चरित्रहीन साबित करदिया। तब श्री कृष्ण अपनी पुत्री को पंछी होने का श्राप दिया और कहा कि तुम अब ऐसा ही घूमते रहना। जब श्री कृष्ण ने सामा को श्राप दिया तब उनका भाई चकेवा उनके साथ नहीं था और वह शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में थे जब वह अपने घर आए तब उनको यह बात पता चला। तब उन्होंने वह उसकी रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्पित होगये। कुछ समय बाद, श्री कृष्ण को पता चलता है कि चुग्ला बढ चढ कर उस पर गलत लांछन लगया हे । तब चकेवा ने इस पर अनुसंधान किया और सच्चाई को बाहर लाया तो अब श्राप तो पड़ चुका था तब श्री कृष्ण ने उसको मुक्ति दीया। तब श्री कृष्ण चकेवा के संग सामा को खोजने के लिए निकल पड़े तब मिथिला में वह हंस के साथ पाए गए। हंस जो सामा का पति था जो सामा से बहुत प्यार करता था और वह भी एक पक्षी बन गया था। यह त्यौहार सामा ने चकेवा को जैसे अच्छे होने का काम ना दिया। वैसे हर एक बहन अपने भाई के अच्छे स्वास्थ्य आयु के लिए यह सामा चकेवा का पर्व मनाती है। सामा ने कृष्ण के श्राप से मुक्ति मिथिला में पाया था इसी के कारण मिथिला में यह पर्व मनाया जाता है।
सामा चकेवा का मुहावरा
वृंदावन मे आइग लागल कोइ ने मिझाबै हे '
हमरो से अपन भैया बहर से अबै हे '
साम चाको समा चाको अबिहा हे अबिहा हे जोतला खेतमें बैसिहा हेबै सिहा हे।
सब हक पाटिया उठाबिहा हे उठाबिहा हे !!
ओइ पटिया पर क्या क्या जाना क्या क्या जाना!
छोटे बड़े नबो जाना नबो जाना !!
नबो जाना के खरे पूरी खरे पूरी!
हमरा भैया के सोने चुरि सोने चुरि !!
सामा चकेवा खेला कैसे जाता है
सब महिलाएं इकट्ठा होती हैं और अपने कुल देवी-देवताओं को स्मरण करती हैं। सब मिलकर कुल देवी-देवता का गीत गाते हैं, उसके बाद सामा चकेवा का लोकगीत गाते हैं। सामा चकेवा के गीत में भाई और बहन का नाम लिया जाता है। नवम्बर के सीजन में पूरे खेत में धान कटा रहता है। वह खाली होता है, तो महिलाएं घर से गीत गाते हुए, हाथ में अपनी सभी मूर्तियों से भरी टोकरी लेकर, खेत की ओर निकल पड़ती हैं।
वृंदावन और चुगला को हर दिन थोड़ा-थोड़ा जलाया जाता है। इस कहानी में अधिकांश मूर्तियां पक्षी के रूप में होती हैं। सामा चकेवा की मूर्तियाँ हैं – सप्तर्षि, वृंदावन, और चुगला (वह व्यक्ति जो बदनाम समा करता है)। सांकेतिक रूप से चुगला का अर्थ होता है ‘चुगलखोर’ (दूसरों की बुराई करने वाला)। देव उत्थान एकादशी की तिथि से सामा का श्रृंगार किया जाता है, बेटी विदाई के भाव से।
समदौन एक मैथिली पारंपरिक लोकगीत है, जिसे इसी दिन से गाया जाता है। यह गीत बेटी की विदाई के समय गाया जाता है। यदि बहन विवाहित होती है, तो भाई बहन के लिए कपड़े और खाने-पीने की चीजें लेकर उसकी ससुराल आता है। भाई उन सभी मूर्तियों को अपने घुटने से तोड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर, कन्या समा और चाकेवा की मूर्तियों को नदी में विसर्जित किया जाता है।
समा चाकेवा का गाली
इनार पर कादो चुग्ला बहु पदो
कटिया मे गडइ चुग्ल बड छरछरै
चुग्ला रै तोहर इ कोन बानि
अक बानि बक बानि
नबो जाना के खरे पूरी खरे पूरी!
हगके निछक पानि
समा चाकेवा का गाली
मिथिला में सामा चकेवा का बहुत सारे गीत है और यह गीत बहुत आकर्षक लगता है सुनने में।
सामा खेलु हे बहिना भैयाके अङ्गना
कोने भैया जेता काशी बनारस
कोने भैया जेता सहर पटना
सामा खेलु हे बहिना भैयाके अङ्गना
बड़का भैया जेता काशी बनारस
छोटका भैया जेता सहर पटना
सामा खेलु हे बहिना भैयाके अङ्गना
बड़का भैया लता रेशमी बनारसी
छोटका भैया लता सोना के कंगना
सामा खेलु हे बहिना भैयाके अङ्गना
बड़की बहिनो पहिरथु रेशमी बनारसी
छोटकी बहनों पहिरथु सोना के कंगना
सामा खेलु हे बहिना भैयाके अङ्गना चुग्ल बड छरछरै
सामा चकेवा का गीत
समा चाकेवा मे आने वाली चुनौतिया
अब मिथिला में यह पर्व लुप्त हो रहा है। और बहुत लोगों का कहना है कि अब हमें समय नहीं रहता कि यह पर्व मनाए। कुछ समाज सेवि या युवा क्लब और विभिन्न तरह के क्लब यह पर्व जगह जगह पर आयोजन करते हैं और मानते हैं। हम मिथिला वासियों को यह पर्व को बढ़ावा देना होगा और इस पर कैसे लोग आकर्षित हो उस पर हमें ध्यान देना होगा। कुछ स्थानीय लोग यह मानते हैं कि शिक्षा में सुधार लाना चाहिए। हमें हमारी संस्कृतियों के बारे में बताना चाहिए, और हमें गर्व है ऐसे तरीके से हमें समझाना चाहिए। क्योंकि ज्यादातर लोग इसे बेकार समझते हैं और इसे समय की बर्बादी मानते हैं।
चुगला को गाली देने वाला गाना
1 Comments
GREAT AND KNOWLEDGEFUL BLOG.
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