अनुवाद :

जुड़ शीतल एवं सतुआनी पर्व: मैथिली नववर्ष की परंपरा, महत्व एवं संस्कृति का संगम || Jud Sheetal and Satuan festival

विषय सूची

                                                                                       सुझाया गया :

मैथिली नववर्ष, जुड़शीतल आ सतुइन – मिथिला संस्कृति केर अभिन अंग

परिचय

मिथिला संस्कृति हमेशा से लोगों और प्रकृति से जुड़ी रही है। इस पावन भूमि पर मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व-त्योहार में सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण और पारंपरिक जीवन शैली का सुंदर दर्शन होता है। जुगशीतल, सतुआईन और मैथिली नववर्ष यहां के प्रमुख पर्व हैं, जो मिथिला समाज को उसकी मूल भावना से जोड़ते हैं।
जुड़े शीतलएक कीचड़ मिट्टी का त्योहार अर्थात इस दिनव्यक्ति कीचड़ और मिट्टी में खेल कर यह त्यौहार मनाया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता है कुछ इसमें समय के अनुसार बदलाव हो गया और हमारा त्यौहार का नया रूप बन गया। 



 

जुड़शीतल


सतुइन – सादा जीवन, पोषक भोजन

सतुइन या सतुआनी, मिथिला और मधेश, कोशी, बिहार का एक प्रमुख त्यौहार है जो बेसन (सतुआ) पर आधारित है। यह त्यौहार गर्मी की शुरुआत में शरीर को संतुलित रखने के लिए माना जाता है। 

परम्परा एवं विधि : 

  • इस दिन सत्तू (भुने हुए चने को पीसकर बनाया गया आटा) को पानी में मिलाकर खाया जाता है।
  • गुड़, दही, आम, और नींबू का भी सेवन किया जाता है।
  • बड़ों को जल उनके पांव पर दिया जाता है और फिर सिर पर जल रखकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। 
  • दही-चूड़ा, कच्चा आम, पान-सुपारी, सतुआ आदि परंपरागत भोजन ग्रहण करैत अछि।
  • घर की सफाई करने के बाद थाली में प्रसाद रखें और फिर पूजा करें।

महत्व:

  • सतुआ शरीर को ठंडा रखता है, जो गर्मियों में बहुत उपयोगी है।
  • यह त्यौहार किसान जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है - सादा, स्वस्थ और पौष्टिक भोजन।
  • इसमें पारंपरिक ग्रामीण जीवन, कृषि और सादगी की भावना समाहित है।




जुड़शीतल – शीतलता आ शुद्धता केर पर्व

जुड़शीतल, यह मैथिली नववर्ष के दुसरे दिन, वैशाख माह मे मनाया जाता है। इस दिन की विशेषता जल से जुड़ी है। 'जुड़' का अर्थ है "जुड़ाव" या "संबंध" और 'शीतल' का अर्थ है शीतलता या ठंडक या शुद्ध - इसलिए यह त्यौहार पानी के महत्व पर आधारित है।

परम्परा एवं विधि : 

  • लोग चैत्र माह के अंतिम दिन से एक दिन पहले अपने घरों और आँगन की सफाई करते हैं।
  • उस रात लोग अपने घरों में ठंडा पानी भरते हैं, जिसे अगले दिन लोगों पर, तुलसी में, घरों के दरवाजों पर और खाद्य भंडारों पर छिड़का जाता है।
  • बुजुर्गों को जल दिया जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
  • वे पारंपरिक भोजन जैसे दही-चूड़ा, कच्चा आम, पान-सुपारी, सहजन, बड़ी, भात, तरुवा, सतुआ आदि खाते हैं।
  • इस दिन सभी लोग कम से कम एक पेड़ या पौधा लगाते हैं।
  • इस दिन लोग सड़कों की सफाई करते हैं। 🌱जुडाशिताल पर जल स्रोतों और सड़कों की सफाई एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह न केवल स्वच्छता का प्रतीक है, बल्कि सामुदायिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को भी दर्शाता है।
  • इस दिन घर की चौखट, मुख्य द्वार और पंछियों की पूजा होती है। खाना चढ़ाने की परंपरा में सहजन, बड़ी और भात शामिल होते हैं। यह प्रकृति और परिवार के प्रति आदर का प्रतीक है। 

महत्व:

  • ठंडे पानी के माध्यम से शरीर और मन की शीतलता का संदेश दिया जाता है।
  • यह दिन प्रकृति, जल और जीवन के संतुलन को मान्यता देता है।
  • सामुदायिक एकता, बड़ों के प्रति सम्मान और पारंपरिक भोजन को बढ़ावा दिया जाता है।



मैथिली नववर्ष - नई ऊर्जा और नई परंपराओं का स्वागत
जुड़शीतल, मैथिली नव वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन मनाया जाता है - इस दिन को जुड़शीतल कहा जाता है। मिथिला में, इस दिन को नए सौर वर्ष की शुरुआत माना जाता है। 

उत्सव के रूप : 

  • लोग अपने घरों को सजाते हैं, दरवाजे पर अल्पना (मिट्टी या चूने से बनी कलाकृति) बनाते हैं।
  • पारंपरिक परिधान पहने लोग एक दूसरे से मिलते हैं।
  • यहां "नव वर्षक शुभकामना" कहना, बड़ों से आशीर्वाद लेने और सामुदायिक भोज का आयोजन करने की परंपरा है।
  • घर की सफाई करने के बाद थाली में प्रसाद रखें और फिर पूजा करें।

विशेषता:

  • यह नववर्ष सिर्फ समय की उल्टी गिनती नहीं है बल्कि नई ऊर्जा, नई प्रेरणा और नए रिश्तों की शुरुआत है।
  • यह त्यौहार किसान की जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है - सरल, स्वस्थ और पौष्टिक भोजनइससे मैथिली पहचान बढ़ती है और नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से परिचय होता है।




लुप्त होती परंपरा:

जुड़शीतल, सतुआनी और मैथिली नव वर्ष जैसे पारंपरिक त्योहार आज की युवा पीढ़ी से धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। शहरीकरण, आधुनिक जीवनशैली और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण ये लोक त्योहार अब नहीं मनाए जाते। युवा पीढ़ी के कई लोगों को इस उत्सव के महत्व के बारे में पता ही नहीं है। पहले के समय में इस दिन बच्चे और युवा कीचड़ में खेलकर त्योहार मनाते थे, ठीक वैसे ही जैसे होली में रंगों से खेला जाता है।

संरक्षण के उपाय:

  1. घरेलू और शिक्षित समाज द्वारा इस त्यौहार के उत्सव को पुनर्जीवित करना।।
  2. स्कूलों और कॉलेजों में पारंपरिक त्योहारों पर सेमिनार और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करना।
  3. बुजुर्गों को बच्चों को इस परंपरा की कहानी कहने की संस्कृति से परिचित कराना चाहिए।
  4. स्थानीय संगठन द्वारा सामुदायिक भोज, अल्पना प्रतियोगिता, सतुआ भोज का आयोजन किया गया।
  5. डिजिटल माध्यम से इसका की सुंदरता और महत्व को प्रदर्शित करना।

अनूठापन:

  • जल आशीर्वाद की परंपरा: बुजुर्गों द्वारा शीतल जल को परिजनों के सिर पर छिड़कना, शीतलता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

  • प्राकृतिक तत्वों का समावेश: किचर (मिट्टी) से स्नान करना और पेड़-पौधों को पानी देना, प्रकृति के साथ गहरे संबंध को दर्शाता है।

  • सातु और शाकाहारी भोजन: जौं और चने का सातु, दही, कढ़ी जैसे सुपाच्य और शीतल खाद्य पदार्थों का सेवन, गर्मी में स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

  • खेती और हरियाली की कामना: खेतों और बाग-बगिचों में पानी छिड़कना, वर्ष भर हरियाली और उपज की कामना का प्रतीक है।

  • सामाजिक समरसता: परिवार और समुदाय के सभी सदस्य मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होता है।

डिजिटल माध्यम और सोशल मीडिया का उपयोग:

  1. फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ब्लॉग के माध्यम से लोगों को त्योहार के बारे में जानकारी दें।
  2. वीडियो, रील्स और पोस्ट के माध्यम से परंपरा का प्रचार-प्रसार करना।
  3. ऑनलाइन प्रतियोगिता – जुगशीताल पर फोटो, कहानी, कविताएं साझा करना।
  4. पॉडकास्ट, शॉर्ट्स और सोशल मीडिया ट्रेंड्स के माध्यम से नई पीढ़ी में रुचि जगाएं।



निष्कर्ष

जुड़शीतल और सतुआनी केवल त्योहार ही नहीं बल्कि हमारे जीवन की यादें हैं जो आज भी दिल को सुकून देती हैं। बचपन में मिट्टी में खेलना, हंसी से गूंजता आंगन, स्वादिष्ट सतुआ और दही-चूड़ा से भरी थालियां- ये आज भी हमारे अंदर जिंदा हैं।

यह त्यौहार हमें सिखाता है कि सादगी में ही खुशी है; त्यौहारों को मिट्टी से जुड़कर भी मनाया जा सकता है। यह न केवल नए साल की शुरुआत है, बल्कि हमारे पूर्वजों की परंपराओं, मिट्टी की खुशबू और अपनेपन की भावना भी है।

जब हम जूडेशिटल मनाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हम अपनी जड़ों से फिर से जुड़ गए हैं - जहाँ केवल प्रेम, अपनापन और संस्कृति की मिठास है। यह हमारी असली पहचान है, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए और अगली पीढ़ी तक पहुंचाया जाना चाहिए।


सूचना

मिथिला में घूम जाने वाले कुछ विशेष स्थान वीडियो तथा ब्लॉग सहित।

जनकपुर धाम

सीता को समर्पित यह भव्य मंदिर जनकपुर का सबसे प्रसिद्ध स्थान है सफेद संगमरमर से निर्मित ९ लाख की लागत से बने इस मंदिर को नौलखा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
यह वह स्थान है जहां माता सीता और भगवान राम का विवाह हुआ था। यह स्थान जानकी मंदिर से लगभग ४.२ किमी दूर है।

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पिराड़ी मंडप

जनकपुर में स्थित है। यहां पर राम जानकी जी का विवाह हुआ था ।

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