नचारी
गे माई चंद्रमुखी सन, गौरी हमर छथि
गे माई चंद्रमुखी सन, गौरी हमर छथि
सुरुज सन करितौं जमाई गे माई
चंद्रमुखी सन, गौरी हमर छथि
सुरुज सन करितौं जमाई - 3
गे माई चंद्रमुखी सन, गौरी हमर छथि
सुरुज सन करितौं जमाई
नारद के हम की रे बिगाड़लौं, जिन बूढ़ आनल जमाई - 2
गे माई एहेन सुनरि धिया तिनको केहेन पिया,
नारद आनल उठाई,
गे माई एहेन सुनरि धिया तिनको केहेन पिया,
नारद आनल उठाई,
परिछन चलली माई मनाईंन , वर देखि खसलि झमाई - 2
गे माई हम नै बियाहब ईहो तपसि वर
मोर धिया रहती कुमारी,
गे माई हम नै बियाहब ईहो तपसि वर
मोर धिया रहती कुमारी,
मोर गौरि रहती कुमारी,
कहथिन गौड़ी सुनू हे सदाशिव एक बेर रूप देखाऊ, - 2 (गे माई )
देखि जुड़ा इति मे मनाईंन देखत नगर समाज - 2 (गे माई )
भनइ विद्यापति सुनु हे मनाईंन
इहो थिक त्रिभुबन नाथ - 2
गे माई करम लिखल छल ईहो तपसि वर
लिखल मेटल नहि जाय
गे माई करम लिखल छल ईहो, तपसि वर
लिखल मेटल नहि जाय - 5
गीतका अर्थ
यह एक सुन्दर मैथिली लोकगीत है, जो शिव-पार्वती विवाह की कथा को भावपूर्ण एवं पारंपरिक ढंग से प्रस्तुत करता है यह एक माँ (गौरी की माँ) की भावनाओं को दर्शाता है जो अपनी अत्यंत सुंदर बेटी के लिए एक तेजस्वी और शाही दूल्हा चाहती है, लेकिन जब उसे दूल्हे के रूप में एक बूढ़े तपस्वी (भगवान शिव) को दिखाया जाता है तो वह निराश हो जाती है।
गीत की शुरुआत एक माँ द्वारा अपनी बेटी गौरी की असाधारण सुंदरता का वर्णन करने से होती है। वह कहती हैं कि गौरी का चेहरा चाँद की तरह चमकता है और वह उसके लिए ऐसा पति चाहती हैं जो सूरज की तरह चमकता हो। लेकिन नारद मुनि के कारण एक वृद्ध तपस्वी को वर के रूप में लाया गया, जिससे माता नाराज और व्यथित हो गईं। उन्हें लगता है कि ऐसा दूल्हा उनकी खूबसूरत बेटी के लिए उपयुक्त नहीं है और वे इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं।
जब माता विवाह की परीक्षा प्रक्रिया (स्वयंवर या परिच्छेद) के लिए जाती है और शिव को तपस्वी के रूप में देखती है, तो वह बेहोश हो जाती है वह साफ कहती है कि वह अपनी बेटी का विवाह इस तपस्वी से नहीं करेगी और गौरी को कुंवारी ही रहने देगी लेकिन गौरी स्वयं भगवान शिव से अपने दिव्य रूप को प्रकट करने की प्रार्थना करती हैं जब भगवान शिव अपना असली तेजस्वी रूप प्रकट नहि करते हैं।
अंत में कवि विद्यापति कहते हैं कि यह भगवान शिव द्वारा लिखी गई नियति थी, जिसे कोई नहीं बदल सकता था यह गीत सौभाग्य, भक्ति और विश्वास का प्रतीक है यह विवाह के संबंध में माँ की चिंता और अंततः परमेश्वर की इच्छा के प्रति उसके समर्पण को दर्शाता है यह गीत भक्ति और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रतिबिंबित करने वाला एक महत्वपूर्ण लोकगीत है, जो मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करता है
मुख्य संदेश:
यह गीत शिव-पार्वती विवाह की कथा को एक भावनात्मक रूप में प्रस्तुत करता है, जहाँ पार्वती की माता पहले शिव को एक योगी के रूप में देखकर चिंतित होती हैं, लेकिन अंततः यह समझ जाती हैं कि शिव ही सर्वोत्तम वर हैं और भाग्य को बदला नहीं जा सकता।
यह गीत पारंपरिक भक्ति भाव और विवाह से जुड़ी भावनाओं को दर्शाता है।
0 Comments