अनुवाद :

प्रेम आ सौंदर्यक गीत: विद्यापति गीत || मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिय

विषय सूची

प्रतीक्षा विद्यापति गीत

 मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया

मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया

ताहि तर कुररए काग रे।

सोने चोंच मढाये देव बायस, 

जो पिया आओत आज रे।


मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया


गावह सखि सब लोरी झूमर , 

मयन अराधए जाउं रे।

चओ दिसि चम्पा मौली फूमाय्ल, 

चान इजोरिया राति रे।


मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया


कइसे कए हमे मयन अराधव,

होइति बड़ि रति साति रे।



बाँक समय कागा केयो न अपन हित 

देखल आंखि पसारि रे। 


मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया


विद्यापति कवि वर एहो गावही

दुके अच्छि गूनक निधान हे

राउ भोगिसर सब गुन आगर

पद्मा देरि रमान हे


मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया


ताहि चढ़ि कुररए काग रे।

सोने चोंच बांधि देव तोहि बायस, 

जओं पिया आओत आज रे।

मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिया

 मोरा रे अँगनमा चानन केरि गछिय








गीतका अर्थ

यह कविता महाकवि विद्यापति की अनुपम रचना है, जिसमें महिला अपने पति के दूर होने के कारण विरह की अनुभूति व्यक्त कर रही है। वह अपने आंगन में चंदन के वृक्ष के नीचे खड़ी है, जहां कौवा बैठा हुआ है। मिथिला की मान्यता अनुसार, कौवे की कर्कश ध्वनि सुबह में किसी मेहमान या प्रियजन के आगमन का संकेत मानी जाती है। महिला कौवे से कहती है कि यदि उसके पति आज लौट आए, तो वह उसकी चोंच को सोने से मढ़वाएगी। यह पंक्ति प्रतीकात्मक रूप से महिला की व्याकुलता और प्रतीक्षा को दर्शाती है। 

 

महिला अपने सखियों से लोरी और झूमर गाने का आग्रह करती है ताकि समय कट सके। वह चारों ओर फैली चंपा के फूलों की खुशबू और चांदनी रात का वर्णन करती है, जो विरह के दर्द को और गहराई देता है। यह दृश्य न केवल प्रकृति की सुंदरता का चित्रण करता है, बल्कि महिला के मन में छिपे दर्द और अपने प्रिय के लौटने की आशा को भी उजागर करता है। 

 

कविता के अंत में महिला अपने पति के गुणों और उनके साथ बिताए पलों को याद करती है। कौवे को प्रतीक बनाकर वह अपनी आशाओं और निराशाओं को व्यक्त करती है। यह कविता न केवल विरह और प्रेम का चित्रण करती है, बल्कि मिथिला की सांस्कृतिक परंपराओं, लोक विश्वासों, और प्राकृतिक सुंदरता को भी जीवंत करती है।


                                               -लेखक  कोकिलकवि विद्यापति

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