विषय सूची
महेशवाणीी
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी
गे माई हम नहि शिव सँ गौरी बिआहब,
मोर गौरी रहती कुमारीगे गे माई
भूत-प्रेत बरिआती अनलनि,
मोर जिया गेल डेरा, गे माई
गालो चोकटल, मोछो/ केसो पाकल,
पयरोमे फाटल बेमाइ, गे माइ
मोर गौरी रहती कुमारीगे गे माई
भनहि विद्यापति सुनू हे मनाइनि,
इहो थिका त्रिभुवननाथ, गे माई
मोर गौरी रहती कुमारीगे गे माई
शुभ-शुभ कए गौरी के बियाहू,
तारू होउ सनाथ गे माई
गीतका अर्थ
यह मैथिली लोकगीत महादेव और पार्वती के विवाह से जुड़ा हुआ है, जिसमें हास्य और व्यंग्य के माध्यम से विवाह के प्रसंग का वर्णन किया गया है। यह गीत कोकिल कवि विद्यापति द्वारा रचित है और मैथिली समाज की उस परंपरा को दर्शाता है, जिसमें विवाह के समय वर पक्ष पर मजाक और व्यंग्य किया जाता है।
गीत में गौरी की माँ और रिश्तेदार शिव के रूप-स्वरूप पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि शिव वर के रूप में उपयुक्त नहीं हैं। उनकी बारात में भूत-प्रेत शामिल हैं, जो डरावने हैं और उनकी हालत खराब है—मुँह गालों से चिपका, बाल सफेद और पैर फटे हुए हैं। यह स्थिति गौरी को भयभीत कर सकती है, इसलिए माँ कहती हैं कि गौरी को कुमारी ही रहने दें।
हालांकि गीत में मजाकिया भाव है, अंत में कवि यह भी बताते हैं कि शिव त्रिभुवननाथ हैं, अर्थात् ब्रह्मांड के स्वामी। गौरी का उनसे विवाह शुभ और मंगलकारी होगा। इस प्रकार, यह गीत विवाह की परंपरा में मनोरंजन और धार्मिक भावनाओं का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करता है।
0 Comments