मिथिला की समृद्ध पारंपरिक विवाह और चलन- परम्परा
परिचय
विवाह एक ऐसा शब्द है जिस पर घंटों चर्चा की जा सकती है। यह न केवल एक सामाजिक समारोह है बल्कि हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार भी माना जाता है। दुनिया के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में विवाह के आयोजन के तरीके अलग-अलग हैं, लेकिन इसका महत्व और पवित्रता हर समाज में एक जैसी है।
आज हम मिथिला संस्कृति में विवाह की परंपराओं और रीति-रिवाजों के बारे में बात करेंगे। बिहार और नेपाल के कुछ हिस्सों में फैले मिथिला क्षेत्र की संस्कृति विवाह को एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक संस्कार मानती है। मिथिला में विवाह के आयोजन में विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक परंपराओं का पालन किया जाता है, जो इसे एक अनूठा अनुभव बनाता है।
इस प्रकार, विवाह न केवल दो व्यक्तियों का मिलन है, बल्कि यह दो परिवारों और समुदायों के बीच एक मजबूत और सामूहिक बंधन भी स्थापित करता है।
मिथिला के विवाह की रस्में
मिथिला संस्कृति में विवाह समारोह अलग-अलग समुदायों के अनुसार अलग-अलग परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाए जाते हैं। इनमें कायस्थ, अब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, जाट और अन्य जातियां शामिल हैं। प्रत्येक जाति के विवाह अनुष्ठानों में भिन्नताएं हैं, लेकिन कुछ समानताएं भी पाई जाती हैं। इन विवाहों में परिवारों के बीच संबंध महत्वपूर्ण होते हैं और पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है। प्रत्येक समुदाय के विवाह समारोह की अपनी विशेषताएं हैं, लेकिन उद्देश्य एक ही है- दो परिवारों का मिलन और उनके बीच सामूहिक संबंधों को मजबूत करना। इस प्रकार, मिथिला में विवाह परंपराएँ विविध हैं, फिर भी सांस्कृतिक रूप से जुड़ी हुई हैं।
रोका:
विवाह से पहले लड़के और लड़की के परिवार मिलकर शादी की तारीख तय करते हैं, जिसे मिथिला में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे "सिद्धांत", "फलदान", या "मंगनि" , "छेका" यह अनुष्ठान औपचारिक रूप से रिश्ते की पुष्टि करता है और विवाह की ओर पहला कदम है।पारंपरिक आभूषण:
कुमरन मटकोर:
मटकोर में दूल्हा/दुल्हन के घर की महिलाएं गीत गाती हैं और उन्हें तालाब पर ले जाती हैं। अगले दिन वहां से लाई गई मिट्टी से चूल्हा बनाया जाता है और रात में "लाबा" भूना जाता है। कुमरन में उसी दिन रात में "घीधारी" विधि होती है, जो मटकोर के साथ सम्पन्न की जाती है। इस दिन ही हल्दी लगाई जाती है।मरब ठठी
बारात:
बारात विवाह की मुख्य रस्म है, जिसमें दूल्हा अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ सज-धज कर दुल्हन के घर जाता है। यह उत्सव नाच-गाने और रस्मों से भरपूर होता है।कन्यादान
शादी के दिन की सबसे महत्वपूर्ण रस्मों में से एक है कन्यादान, जिसमें पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में सौंपते हैं। यह रस्म विवाह का आध्यात्मिक और सामाजिक आधार बनाती है।
सिन्दूर दान और वैदिक परिक्रमा
लकड़ी और केले से बनी वेदी पर अग्नि प्रज्वलित कर वैदिक मंत्रों के साथ हवन किया जाता है। इसके चारों ओर दूल्हा और दुल्हन परिक्रमा करते हैं, जो विवाह को पवित्र और वैधानिक बनाता है।
कोहबर की रस्में
विवाह के बाद, दूल्हा और दुल्हन को कोहबर घर में विशेष रस्में निभानी होती हैं:
- देहर छेकाई: दुल्हन का स्वागत और गृह प्रवेश।
- नैना जॉगिंग: दूल्हा-दुल्हन के बीच आँखों का संपर्क।
- नारि परिछन: दूल्हे के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए महिलाओं द्वारा अनुष्ठान।
चतुर्थी
विवाह के चौथे दिन चतुर्थी नामक रस्म होती है, जिसमें पुनः शादी का आयोजन किया जाता है। यह रस्म मिथिला संस्कृति का एक अनोखा पहलू है।
द्विरागमन और विदाई
विवाह के 4 दिन बाद दुल्हन का द्विरागमन होता है, जिसमें वह अपने ससुराल लौटती है। इसके बाद बेटी विदाई की रस्म पूरी होती है।
समुदाय विशेष परंपराएं
हर समुदाय में इन रस्मों को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
- कुछ परिवारों में यह विदाई 1 दिन के बाद होती है।
- अन्य परिवारों में यह 4 दिन, 7 दिन, या उससे अधिक समय बाद होती है।
- ब्राह्मण समाज में यह रस्में 15 दिन, महीनों, और कभी-कभी वर्षों बाद भी पूरी होती हैं, क्योंकि उनकी सामाजिक और धार्मिक पहुंच दूर-दूर तक होती है।
निष्कर्ष
हमारे मिथिलांचल में कई रस्में और रीति-रिवाज हैं, जिन्हें एक ही पोस्ट में समेटना मुश्किल है। इसलिए, हम समय-समय पर इन पर अलग-अलग पोस्ट लाते रहेंगे।
सूत्र और संदर्भ
इस ब्लॉग में दी गई जानकारी मेरे व्यक्तिगत अनुभव, हमारे समुदाय में सदियों से प्रचलित परंपराओं, और मेरे माता-पिता, दादा-दादी, तथा अलग-अलग जाति के लोगों से पूछताछ के आधार पर तैयार की गई है।
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मिथिलांचल एक विविधतापूर्ण क्षेत्र है, जहां विभिन्न जातियों और क्षेत्रों के रीति-रिवाजों में अंतर देखा जा सकता है। प्रत्येक जाति और क्षेत्र की परंपराएं उनकी पहचान और संस्कृति का अनमोल हिस्सा हैं। संभव है कि इस ब्लॉग में मैंने किसी विशेष जाति या क्षेत्र की परंपराएं छूट गई हों।
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