अनुवाद :

Ugna Re Mor Katai Gela with lyrics and meaning || "विद्यापति की कविता: 'उगना रे मोरे कतए गेलाह' में शिव और भक्त का अनूठा प्रेम संबंध"

विषय सूची

 नचारी

उगना रे मोरे कतए गेलाह

उगना रे मोरे कतए गेलाह | कतए गेलाह हर किदहु भेलाह ||१||

माँग नही बटुआ रुसी बैसलाह | जोही-हेरी आनी देल हंसी उठलाह ||२||

जे मोरा उगनाक कहत उदेस | ताहि देब कर कंगन सन्देश ||३||

नंदन वन बिच भेटल महेश | गौरी मन हरकित मेटल कलेस ||४||

विद्यापति भन उगानासं काज | नही हितकर मोर तिहुअन राज ||५||







गीतका अर्थ

यह मैथिली कविता भगवान शिव को उगना के रूप में वर्णित करती है। यहाँ उगना विद्यापति के प्रिय सेवक थे, और इस कविता में उन्हें शिव का रूप बताया गया है। आइए इसे हिंदी में समझते हैं:


उगना, कहाँ चले गए हो?

कहाँ चले गए हो और मुझे छोड़कर किस ओर चले गए हो?


तुमने मेरी किसी भी चीज़ की माँग नहीं की और बिना कुछ कहे चले गए।

मैंने ढूंढा, फिर भी तुम मुझे हँसते हुए छोड़ गए।


जो भी मुझे उगना का पता बताएगा,

उसे मैं अपने हाथों का कंगन देकर धन्यवाद दूंगा।


नंदन वन के बीच में महेश (शिव) मिले,

जिससे गौरी का मन प्रसन्न हुआ और उनके सारे दुःख दूर हो गए।


विद्यापति कहते हैं कि उगना का साथ ही मेरे लिए महत्वपूर्ण है,

तीनों लोकों का राज भी उसके बिना मुझे सार्थक नहीं लगता।


कविता में उगना का बिछड़ना, शिव के सच्चे रूप और भगवान के भक्त और भगवान के बीच गहरे संबंध को दिखाता है, जहाँ सांसारिक चीजें भी गौण हो जाती हैं।

लेखक  ~ कोकिल कवि विद्यापति

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