आम-महुवियाह काल
प्रेमक डोली चढ़ि चलली सिया दाइ
प्रेमक डोली चढ़ि चलली सिया दाइ
हे सखि आम-महु वियाहय
बाजन बाजय बहुत
हे सखि आम-महु वियाहय
सिन्नुर-पिठार सिया आममे लगाओल
हे सखि आम-महु वियाहय
पीयर डोरी लेपटाय
हे सखि आम-महु वियाहय
गीतका अर्थ
"प्रेमक डोली चढ़ी चलली सिया दाई" मैथिली लोक गीत का एक हिस्सा है, जिसे "आमुही विवाह" नामक
अनुष्ठान/ बिध/रस्म के दौरान विवाह के अवसर पर गाया जाता है। आइये इसे विस्तार से समझते हैं:
"आम-माहू विवाह" मैथिली संस्कृति का एक अनूठा और पारंपरिक अनुष्ठान है, जिसमें
प्रकृति, प्रेम और सामूहिक उत्सव का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस गीत के माध्यम से विवाह
की पवित्रता और आनंद का वर्णन किया गया है।
गीत की शुरुआत "प्रेमक डोली चढ़ि चललि सिया दाई" से होती है, जो प्रतीकात्मक
रूप से सीता माता के विवाह को दर्शाता है। इसमें प्रेम को डोली का रूप देकर विवाह के पवित्र और
आनंदमय माहौल को दर्शाया गया है। इसके बाद "हे सखी, आम-महु विहाय" पंक्ति सखियों के साथ साझा की
गई खुशी और सामूहिक आनंद को व्यक्त करती है। यह रस्म बताती है कि विवाह केवल वर-वधू के मिलन तक
सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे परिवार और समाज के लिए एक उत्सव है।
इस गीत में आम के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। "सिन्नुर-पिथर सिया आम्मे
लागोल" पंक्ति आम
के पेड़ों की शाखाओं पर सिंदूर और पिठार (हल्दी) चढ़ाने की परंपरा को संदर्भित करती है। यह
प्रकृति के साथ सामंजस्य, देवताओं की पूजा और शुभता का प्रतीक है। "पियर डोरी लपटाई" पंक्ति
हल्दी से लिपटे पीले धागे का वर्णन करती है, जिसे आम के पेड़ों की शाखाओं के चारों ओर लपेटा
जाता है। यह अनुष्ठान शुभकामनाओं और पवित्रता का प्रतीक है।
"बाजन बाजय बहुत" एक बिवाह के दौरान बजाए जाने वाले वाद्य यंत्रों और संगीत
के आनंदमय माहौल को व्यक्त करता है। कुल मिलाकर, यह गीत शादी की रस्मों के दौरान सामूहिक आनंद,
प्रेम, प्रकृति और परंपरा का एक अद्भुत उत्सव है, जो मैथिली संस्कृति की समृद्धि को दर्शाता
है।
यहां पर सीता दुल्हन को बताया गया है।
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