नचारी
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी ना
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी
जे सभ गेल अहाँक द्वार, क्यो नहि भेल विमुख सरकार
बाबा हमरे बेर से भांग खाय भकुआयल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी ना
बाबा धरब अहाँपर ध्यान, पूजब शिवशंकर भगवान
बाबा अहाँक चरण मे हम सब लेपटायल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी ना
जेहन कातिक-गनपति, तेहने हम अयलहुँ शरणागत
बाबा राखी चाहे बुराबाी, आब हम थाकल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी ना
की हेत अयलहुँ द्वार, किछु नहि पूछै छी सरकार
बाबा प्रेम मगन रस भांग पीबि
मन्हुआयल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी ना
गीतका अर्थ
यह गीत भक्त और भगवान शिव (भोलेनाथ) के बीच गहरे प्रेम, भक्ति और आत्म-समर्पण को व्यक्त करता
है। इसमें भक्त अपनी पीड़ा, समर्पण और शिव के प्रति अपनी अटूट आस्था को व्यक्त करता है।
गीत की शुरुआत भगवान शिव को संबोधित प्रार्थना से होती है। भक्त उन्हें "दिगंबर" (जो नग्न
है और प्रकृति को अपना वस्त्र मानता है) और "दानी" (जो सब कुछ देता है) कहता है। वह कहता है कि
उसने संसार में बहुत कष्ट झेले हैं और अब वह भगवान शिव की शरण में आया है। भक्त सोचता है कि जो
भी शिव के द्वार पर गया, उसे कभी खाली हाथ नहीं लौटना पड़ा, लेकिन ऐसा क्यों है कि भगवान उसे
भूल गए हैं और उसके कष्टों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
भक्त आगे कहता है कि भांग का रस पीने के बाद भगवान शिव नशे में धुत्त और ध्यानमग्न अवस्था
में हैं। वह अपनी थकी हुई मनःस्थिति को साझा करता है और कहता है कि उसने हर उपाय आजमा लिया है,
अब उसके पास भगवान शिव की शरण में जाने का ही एकमात्र विकल्प बचा है। भक्त यह भी स्वीकार करता
है कि वह अपनी सभी कमियों और कमजोरियों के बावजूद भगवान के सामने आत्मसमर्पण करना चाहता है।
यह गीत न केवल भक्तिमय
गीत में "कार्तिक " और "गणपति" का उल्लेख भक्त की भक्ति की गहराई को दर्शाता है। कार्तिक
(कार्तिकेय) और गणपति (गणेश) भगवान शिव के पुत्र हैं, जो हमेशा उनकी सेवा और प्रेम में रहते
हैं। भक्त का कहना है कि वह भी उनके प्रति समर्पित होना चाहता है और उनके बेटे की तरह उनके
चरणों में रहना चाहता है।
अंत में भक्त कहता है कि वह कुछ मांगने या प्रश्न करने नहीं आया है। वह तो केवल भगवान शिव के प्रेम और आनंद में डूबना चाहता है। भक्त भगवान के ध्यान की अवस्था को भी प्रेम और भक्ति का ही रूप मानता है जिसमें शिव अपने भक्तों के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
इस गीत का मुख्य संदेश यह है कि भगवान शिव सभी को स्वीकार करते हैं, चाहे वे अच्छे हों या बुरे।
यह भक्ति का सर्वोच्च रूप है, जिसमें भक्त अपने दुखों और परेशानियों को भगवान के चरणों में छोड़
देता है और पूरी तरह से समर्पित हो जाता है। इस गीत के माध्यम से भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी
भक्ति, प्रेम और समर्पण को व्यक्त करता है।
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