अनुवाद :

आधुनिक काल में मिथिला का इतिहास Modern period in the history of Mithila

विषय सूची

आधुनिक काल में मिथिला का इतिहास

परिचय

इतिहास के सुखी, समृद्ध और शक्तिशाली राज्य मिथिला, पता नहीं किसके वुरे नजर के करण टुकड़ों में बंट गया है। मुझे नहीं पता कि मिथिला को आज भी अपने अस्तित्व के लिए क्यों संघर्ष करना पड़ रहा है, मिथिला की इस स्थिति के पीछे कोई कारण है। लेकिन इसकी शुरुआत उस समय (५ वीं ईसा पूर्व) से हुई जब "कृति जनक" राजा थे (जो राजा सीरध्वज जनक के वंशज थे)। कृति जनक मिथिला के जनक वंश के अंतिम राजा थे। उसके बुरे चरित्र के कारण ऋषि-मुनियों और प्रजा ने उसे सिंहासन से हटा दिया। जनता ऋषि-मुनियों के साथ मिलकर राज्य चलाने लगी।






उस समय मिथिला में कोई राजा नहीं था और जिस राज्य में कोई राजा नहीं होता, उसकी स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है और एक तरह से वहां लोकतंत्र था। समय और परिस्थितियों के अनुसार राजा के बिना राज्य कमजोर माना जाता था, इसका कारण यह भी हो सकता है कि राजा की अनुपस्थिति में आक्रमणकारी अपने क्षेत्र का विस्तार करने या लूटपाट करने के लिए मजबूत हो गए होंगे। वज्जि महाजनपद ने इस कमजोरी का फायदा उठाया। वज्जि महाजनपद १६ छोटे-बड़े राज्यों का समूह था। इसका एक कार्य प्रत्येक छोटे राज्य का अपने में विलय करना था। इस अवधि के दौरान, मिथिला पर कब्ज़ा कर लिया गया। अपने में समा कर लिया गया।

वज्जि महाजनपद का उदय

इस अवधि के दौरान वज्जि महाजनपद ने मिथिला पर कुछ वर्षों तक शासन किया। उन्हें पराजित करने के बाद कुछ वर्षों तक मगध ने मिथिला पर शासन किया। पाँचवीं शताब्दी में वज्जि महाजनपद को मगध ने हराके मिथिला पर सासन किया । ६ ईसा पूर्व मैं मगध से पराजित हुआ। मगध ने मिथिला पर लगभग १०० वर्षों तक शासन किया। तब पाल वंश ने मगध साम्राज्य को हराया, यानी मिथिला क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और ५०० वर्षों तक वहां शासन किया। उस समय मिथिलाकी राजधानी वैशाली थी।

पाल वंश का उदय


पाल वंश बाहर से आया (बहरी शासक) था और मिथिला पर शासन कर रहा था। पाल वंश का राजा मंदपाल मंद बुद्धि (सुस्त मनस्थिति) के थे। पाल वंश का राजा मंद बुद्धि के वजह से और मिथिला को पाल वंश से मुक्त करने की सोच में समानता सेना का गठन किया गया। समानता का मुख्य लक्ष्य यह था कि हर एक जात जाति का व्यक्ति शामिल हो और एक ही उद्देश्य हो कि पाल वंश को खत्म करना या बहरी शासक से मुक्ति पानाथा ।





कर्नाट राजवंश का उदय हुआ। और समानता सेना का लक्ष्य यह था कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी। पाल वंश को पराजित करने के बाद अब कर्नाट वंश शासन करने लगा। समाता सेना ने सोचा कि हम कुछ दिनों तक अपनी योजना तैयार करेंगे, उसके बाद हम इन सभी के खिलाफ लड़ेंगे और उन्हें हराकर एक बार फिर अपने मिथिला को बाहरी आक्रमणकारियों से यानी बाहरी शासक से मुक्त करायेंगे। ३०० वर्ष तक शासन करने के बादवंश के आपसी मतभेद के कारण अर्थात पारिवारिक मतभेद के कारण सामान्य सी इस लक्ष्य में कामयाब हो पाएऔरबाहरी शासकसे मुक्त खराब मिथिला को एक नया राजादिया गया जी जिनका नाम नाथ ठाकुर था ये सब १४ शताब्दी का घटना है।
14वीं शताब्दी में जब मिथिला को नया राजा मिला तो अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में मुगल सल्तनत ने मिथिला पर आक्रमण कर दिया। उस समय मिथिला एक स्वतंत्र राज्य था। कुछ समय पहले ही मिथिला को अपना राजा मिला था और मुगलों से लड़ते हुए भी मिथिला ने हार नहीं मानी थी और इसी क्रम में कुछ समय बाद अकबर ने फिर से मिथिला पर शासन स्थापित करने की कोशिश की लेकिन वह सीधे तौर पर शासन स्थापित नहीं कर सका। उन पर एक राजा यानी अकबर का शासन होना था जो अप्रत्यक्ष रूप से राजा से कर वसूल करता था और उस पर शासन करता था जिसका नाम महाराजा महेश ठाकुर था। उनके कार्यकाल के दौरान, मिथिला की राजधानी को वैशाली से मधुबनी के राजग्राम (अब राजनगर के नाम से जाना जाता है) में स्थानांतरित कर दिया गया था। इधर मुगलों के गलत आचरण और गलत चरित्र तथा राजनीति को देखकर राजा जा ने खंडवाल वंश की स्थापना की। राजा ने भविष्य में युद्ध करने की मानसिकता से इस कूल का निर्माण किया था। 16वीं सदी तक खंडवाल कमजोर हो गये थे और फिरंगियों के प्रभाव में आ गये थे।                    
16वीं सदी से ही मिथिला की राजधानी राजग्राम से दरभंगा स्थानांतरित कर दी गई और इसी क्रम में 18वीं सदी में ही मिथिला दो भागों में बंट गया, एक नेपाल में और एक मिथिला में। यश सुगौली संधिके कारण सेमिथिलादो भाग में बट गया। खंडवाला राजवंश के भीतर ही दरभंगा राज्य का महाराज लक्ष्मेश्वर सिंह रामेश्वर सिंह कामेश्वर सिंह राजा हुए । अंतिम राजा कामेश्वर सिंह को माना जाता है जो कि भारत देश आजाद हुआ भारत वर्ष का कुछ हिस्सा आजाद हुआ जो कि अभी भारत देश में है तब वहां का राजा रामेश्वर सिंह थे। मिथिला का भारत संघ में विलय हो गया।

अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि मिथिला पहला लोकतांत्रिक देश था जिसे यह श्रेह नहीं मिल सका, यानी जानकारी के अभाव के कारण मिथिला बासि कोनेभी यह श्रेह नहीं ले पाये। संक्षेप में हम यह भी बताना चाहेंगे कि मिथिला का इतिहास हमारे पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। इस इतिहास को कक्षा ७ से कक्षा १० तक के पाठ्यक्रम में शामिल करना उचित होगा।
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