कोजागरा पूर्णिमा
कोजागरा पूर्णिमा हर साल आश्विन महीने में मनाया जाता है खासकर यह भारत और नेपाल में मनाया जाता है, और यह हर एक जगह हर एक रीति-रिवाजों से मनाया जाता है पर मिथिला का कुछ अलग ही अंदाज है तो आज हम मिथिला में कोजागरा कैसे मनाया जाता है उस पर चर्चा करेंगे। ज्यादातर जगहों पर इस रात को महालक्ष्मी की आराधना करके बिताते हैं। पर मिथिला में सीता और राम को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता है और जो नवविवाहित जोड़ी होता है उससे विशेष कार्य करवाया जाता है।
जिस घर में नवविवाहित जोरी होता है अर्थात 1 साल के जोरी उस घर में एक अलग प्रकार के उत्सव आयोजन होता है। तो चलिए जानते हैं की मिथिला में कोई झगड़ा कैसे मनाया जाता है।
मखान
मिथिला में कोजागरा कैसे मनाया जाता है
मिथिला में कोजागरा खास कर विवाहित द्वारा मनाया जाता हे।मिथिला में यह पर्व दो समुदायों द्वारा मनाया जाता है एक कायस्थ समुदाय और दूसरा ब्राह्मण समुदाय। कायस्थ और ब्राम्हण दोनों का रीति रिवाज थोड़ा फर्क होता है लेकिन दोनों को कोजागरा ही मनाते हैं। यह लड़की के ससुराल में मनाया जाता है अर्थात यह लड़के के यहां पर मनाया जाता है और इसमें लड़की पक्ष वाले अपने है सिर्फ के अनुसार से मिठाई मकान और सारे चीज भेजते हैं।
कायस्थ समाज में दूल्हा और दुल्हन दोनों को चुमान किया जाता हे तो ब्राह्मण समाज में सिर्फ और सिर्फ दूल्हा को ही चुमान किया जाता है। पान और घर बांटे जाते हैं और भोज भी अपनी हैसियत के अनुसार ही किया जाता है। जिनके घर में नवविवाहित नहीं है, वह इसे मनाते हैं। वह ज्यादातर मखान खाकर और पान खाकर मनाते हैं । ज्यादा से ज्यादा मखान का खीर बनाते हैं और पान खाते हैं । महिला पुरुष बच्चा हर एक व्यक्ति इस दिन पान खाते हैं। यह सिर्फ और सिर्फ कायस्थ और ब्राम्हण का परिवार में ही नहीं बल्कि पान और मकान खाने का चलन मिथिला के हर एक हिंदू घरों में है। अगर वह और दिन नहीं खाते हैं तो भि ओ इस दिन अवश्य ही खाते हैं। और एक खास बात यह है कि इस दिन रात में कौड़ी (चॉसर जैसा खेल) खेला जाता है।
कायस्थ समाज का कोजागरा
चुनौती
बहुत सारे लोग मिथिला छोड़कर जा रहे हैं। कुछ विदेश में जा रहे हैं तो कुछ देश के अगले हिस्से में जा रहे हैं। जहां पर मखान नहीं मिलता है और व्यस्तता के कारण अब यह रीति रिवाज भी हमारे समाज से धीरे-धीरे करके हटने लगे हैं।जैसे कहीं पर मखान नहीं मिल पाता है तो कहीं पर आज नहीं मिल पाता है यही नहीं और बहुत सारे सामग्री जो इस कार्यक्रम में अर्थात इस रिवाज में चाहिए वह सब नहीं मिल पाता है। यह लोग हमारे देश में एक तो थोड़ा बहुत संभव भी है कि यह त्यौहार मना लिया भी जाए पर बहुत सारे लोग जो विदेश जाकर काम कर रहे हैं विदेश पर ही निर्भर है उन सब से यह नहीं हो पा रहा है हमारे लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है।
निष्कर्ष
जैसे मिथिला का और भी संस्कृति लुप्त हो गया, वैसे हम इस संस्कृति को बचाए रखना चाहते हैं । इसके लिए आप सभी को भी प्रयास करना होगा। मैं यह नहीं कह रहा कि आप दूसरे की संस्कृति को ना अपनाएं बल्कि मैं यह कह रहा हूं कि अपनी संस्कृति को मत भूलिए।
0 Comments