चौरचन विसेष मन्त्र सहित
चौरचन पावनि मिथिलाक महान पावनि मे स एकटा पावैन छै। इ पावनि भादव मास के शुक्लपक्ष चतुर्थी
के मनावल जाइत अछि । इ नेपाल के मिथिला क्षेत्र मे मनावल जाइत अछि। प्रदेश न. २ आ प्रदेश न. १
के किछ क्षेत्र मे मनावल जाइत अछि । आ भारत के बिहार राज्य के किछ जील्ला मे सेहो मनावल जाइत
अछि । मान्यता अछि जे एहि समयक चन्द्रमाक दर्शन करबापर कलंक लगैत अछि।तें एहि दोषक
निवारण करबाक लेल अपना मिथिला में"सिंह: प्रसेन" वला मन्त्रक पाठ कैल जैत अछि।
लगय ताहि हेतु रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा होइत छैक।
एहि पावनि सँ जुरल एकटा कथा अछि जे एक बेर गणेश भगवान
कें देखि चन्द्रमा हँसि देलनि, एहिपर ओं
चन्द्रमा कय सराप देलैन जे अहाँ क देखबा सँ लोक कलंकीत होयत। तखन चन्द्रमा भादव शुक्ल चतुर्थी
मे गणेशक पूजा केलनि। ओं प्रसन्न भ'अ कहलथिन:- अहाँ निष्पाप छी, जे व्यक्ति भादव शुक्ल चतुर्थीकेँ
अहाँक पूजा कऽ ‘सिंह प्रसेन...’ मन्त्रसँ अहाँक दर्शन करत तकरा मिथ्या कलंक नै लगतै आ ओकर सभ
मनोरथ पूर्ण होयत।
चौठचन्द्रक पूजा
ई चतुर्थी सूर्यास्तक बाद अढ़ाइ घण्टा धरिक, लेल जाइछ। जँ तिथि दू दिन एहि समय म
पड़य तँ अगिला दिन व्रत ओ पूजा करी। भरि दिन व्रत क साँझखन अंगना म पिठार सँ अरिपन देल
जाइछ। गोलाकार चन्द्र मण्डलपर केराक भालरि (पात) द'अ ओहिपर पकमान, मधुर, पूड़ी, ठकुआ,
पिड़ुकिया, मालपूआ पायस आदि राखी। मुकुट सहित चन्द्रमाक मुँहक अरिपनपर केराक भालरि द
रोहिणी सहित चतुर्थी चन्द्रक पूजा उज्जर फूल सँ पच्छिम मुहेँ करी। परिवारक सदस्यक संख्यामे पकमान
युक्त डाली आ दहीक छाँछी क अरिपनपर राखी। केराक घौर, दीप युक्त कुड़वार, लावन आदिक
अरिपनपर राखी। एक-एक डाली, दही, केराक घौर उठाऽ ‘सिंह: प्रसेन....’ मंत्रक संग
‘दधिशंखतुषाराभम्...’ मन्त्र पढ़ि समर्पित करी। प्रत्येक व्यक्ति एक-एक टा फल हाथमे ल'अ ओहि मन्त्र
सँ चन्द्रमाक दर्शन कय प्रणाम करी।पुरुष वर्ग मड़र भांगाथि आ दक्षिणा उत्सर्ग क प्रसाद ग्रहण करथि।
चन्द्रमा प्रणाम मन्त्र-
‘दधि-शंख-तुषाराभं, क्षीरोदार्णव-संभवम्।
नमामि शशिनं भक्त्या, शंभोर्मुकुट भूषणम्।।’
चौठचन्द्र-
सिंह: प्रसेनवमवधीत सिंहो जाम्बवताहत: । सुकुमारक मारो दीपस्तेह्राषव स्यमन्तक: ।
अर्थात् दही, शंख ओ बर्फक समान स्वच्छ,
क्षीर सागरसँ उत्पन्न चन्द्रमा (शशि) केँ भक्तिसँ प्रमाण करैत
छी जे महादेवक मुकुटक भूषण थिका।
1 Comments
Very Intersting
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