पराती
सून भवन भेल भोर
सून भवन भेल भोर
श्याम बिनु सून भवन भेल मोर दाइ
आब के आओत दौड़ि, ककरा लपकि झपटि लेब कोर
आब के बजाओत मधुर मुरलिया, ककर चूमब दुनू ठोर
आब के खायत घरसँ लूटि रस, दूध-दही-धृत-घोर
आब ककरा हम लाल-लालकऽ बजायब, करबमे ककरा सोर
आब के बूलत सगर वृन्दावन, के कहाओत चितचोर
कहथि कविपति सूनु माता यशोमति, आब सुख होयत तोर
कंस पछाड़ि पलटि घर आओत, श्यामल मुख चन्द्र चकोर
गीतका अर्थ
यह मैथिली लोकगीत "सून भवन भेल भोर" एक अत्यंत मार्मिक और भक्ति से परिपूर्ण
रचना है, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और उनके वियोग की वेदना को व्यक्त करती है। इसे
प्रायः सुबह के समय गाया जाता है, जब कोई अपने प्रिय को याद करता है और उनके बिना घर का वातावरण
खाली-खाली महसूस करता है।
गीत में यशोदा माता की भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया है, जो
श्रीकृष्ण के बिना अपने घर को सूना और उदास मानती हैं। वे कहती हैं कि अब कौन दौड़कर उनके पास
आएगा, और किसे गोद में उठाकर प्यार करेंगी। कृष्ण की मुरली की मधुर ध्वनि अब किसे सुनाई देगी और
उनके होठों को कौन चूमेगा। माता को यह चिंता भी सताती है कि अब कौन घर में माखन, दूध-दही
चुराएगा और बाल सुलभ शरारतें करेगा। वृंदावन में "चितचोर" (कृष्ण) के बिना अब कौन उनके बाल्यकाल
की स्मृतियों को जीवंत करेगा।
कविपति अंत में माता यशोदा को सांत्वना देते हुए कहते हैं
कि यह वियोग अस्थायी है। भगवान श्रीकृष्ण कंस को पराजित कर, अपने श्यामल मुख से घर लौटकर, माता
को सुख प्रदान करेंगे। यह गीत केवल वियोग की वेदना ही नहीं, बल्कि भगवान के प्रति अटूट प्रेम,
उनकी लीलाओं की याद और उनकी वापसी की आशा को भी दर्शाता है।
यह गीत न केवल भक्तिमय
भावना को जागृत करता है, बल्कि जीवन में आस्था और धैर्य का संदेश भी देता है।
“सून भवन भेल भोर" गीत में श्री कृष्ण को प्रतीकात्मक रूप से पुत्र या पुत्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है, तथा इसे एक माँ की भावनाओं के माध्यम से व्यंग्यात्मक रूप से व्यक्त किया गया है। यह गीत माता यशोदा के दर्द और प्रेम को दर्शाता है, जो अपने बेटे की बचपन की शरारतों और उनसे जुड़ी यादों को पुनः प्राप्त करने की असंभवता को व्यक्त करती है।
यह गीत उस भावना को उजागर करता है, जब कोई बेटा या बेटी घर छोड़कर पढ़ाई, नौकरी, या किसी अन्य कारण से दूर चला जाता है। माता-पिता, विशेषकर माँ या दादी, अपने बच्चे के बचपन को याद करती हैं, जिसमें उनकी शरारतें, ममता से भरे पल, और बालसुलभ हरकतें शामिल होती हैं। गीत में बताया गया है कि किस तरह माँ अपने बेटे की शरारतों को याद करते हुए भावुक हो जाती है—जैसे माखन चुराना, घर में हलचल मचाना, और हर समय हँसी-खुशी का माहौल बनाना।
इस गीत के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि माता-पिता के लिए उनके बच्चों का बचपन सबसे प्रिय होता है। जब बच्चे बड़े होकर घर छोड़ देते हैं, तो उनकी अनुपस्थिति में वही पल सबसे ज्यादा याद आते हैं। यह गीत दादी-नानी की पारंपरिक संस्कृति का भी हिस्सा है, जो पुरानी पीढ़ी की स्मृतियों को जीवंत करता है। यह गीत न केवल श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति है, बल्कि एक माता-पिता की ममता और उनके बच्चों के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है।
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