कुमारिक गीत
जाहि दिन आहे बेटी तोंहे अवतरलऽ
जाहि दिन आहे बेटी तोंहे अवतरलऽ दाइ
ताहि दिन भेल विषमाद
चिन्ता, निन्द हरित भेल बेटी
थिर नहि रहल गेयान
पुत्र जँ होइतऽ बेटी, बजैत बधाबा
धियाक जनम विषमाद
कथी लय आहे अम्मा धियाक जनम देल
खैतहुँ मरिच पचास
मरिचक झोंकसँ धिया दरि जैतय दाइ
छुटि जाइत धियाक सन्ताप
सएह सुनि बाबा उठल चेहाय
मनाइन देल जगाय
गाड़ल धन धिया हम नहि राखब
आब धिया होयत वियाह
बान्ह बन्हबिहऽ बाबा पोखरि खुनबिहऽ
धनकेँ लगबिहऽ छाँह
हाँस छुटुकि गेल, कमल फलकि गेल
जलमे मारय हिलकोर
ई सरोवर बाबा जैतुक मांगय
भैयाक जनम निरधन होय
गीतका अर्थ
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बेटी के जन्म को ‘विषमाद’ कहने पर कटाक्ष:
गीत की शुरुआत बेटी के जन्म को "विषमाद" यानी चिंता और संकट के रूप में देखने से होती है। यह सोच तत्कालीन समाज की सच्चाई को दर्शाती है, लेकिन साथ ही उस मानसिकता पर व्यंग्य करती है, जो इस खुशी के अवसर को भी दुःख का कारण बना देती है।
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माँ की पीड़ा और व्यंग्य:
गीत में माँ यह कहती है कि अगर उसे पता होता कि बेटी का जन्म होगा, तो वह मिर्च खाकर इसे रोकने की कोशिश करती। यह पंक्ति माँ की पीड़ा को व्यक्त करने के साथ-साथ समाज के असंवेदनशील रवैये पर व्यंग्यात्मक चोट करती है।
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पिता का व्यावसायिक दृष्टिकोण और बेटी का मूल्य:
पिता का यह कहना कि बेटी की शादी के लिए गाड़े हुए धन का उपयोग किया जाएगा, सामाजिक सच्चाई का चित्रण है। लेकिन यह सोच पर गहरा व्यंग्य है कि बेटी की कीमत केवल विवाह के खर्चों और सामाजिक दृष्टिकोण से आँकी जाती है।
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पोखर खोदने और धन लगाने का उल्लेख:
पोखर खोदने और धन को सुरक्षित रखने का उल्लेख दिखाता है कि बेटी को परिवार में रखने के बजाय उसके विवाह की तैयारी में संसाधनों का उपयोग किया जाता है। यह समाज की मानसिकता पर कटाक्ष करता है।
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भाई के जन्म को गरीबी के बावजूद स्वीकारना:
गीत के अंत में यह कहा गया है कि बेटा अगर जन्म लेता, तो उसकी गरीबी भी स्वीकार्य होती। यह पंक्ति समाज की लैंगिक असमानता को उजागर करते हुए उस विचार पर प्रहार करती है, जहाँ बेटे को हर हाल में स्वीकारा जाता है और बेटी को बोझ समझा जाता है।
सारांश
यह मैथिली लोकगीत केवल बेटी के जन्म से जुड़ी सामाजिक विसंगतियों को नहीं दिखाता, बल्कि व्यंग्यात्मक तरीके से समाज की रूढ़िवादी सोच को तोड़ने का प्रयास करता है। यह गीत बेटियों को परिवार के अभिशाप के रूप में देखने वाली मानसिकता पर प्रहार करता है और यह संदेश देता है कि बेटियाँ न केवल परिवार का गौरव हैं, बल्कि उनकी भूमिका अमूल्य है।
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